प्रवीण कुमार झाकी किताब स्कोर क्या हुआ? का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।


तेन्दुलकर-गांगुली की जोड़ी अलहदा थी। अपने समय की दुनिया की सफलतम जोड़ी कहूँ तो ग़लत न होगा। सौरभ गांगुली उम्र में सचिन से एक साल बड़े हैं। यह दोनों 1988 में कैलाश गट्टानी के एक निजी दौरे पर इंग्लैंड गये, और ससेक्स की जूनीयर टीम के ख़िलाफ़ साथ में पहली बार ओपनिंग की। उसके बाद यह जोड़ी 1996 के टाइटन कप में ही पहली बार ओपनिंग करने आयी। इस शृंखला के पहले दो मैच में तेन्दुलकर के साथ सुजीत सोमसुन्दर ओपनिंग कर रहे थे, और ख़ास चल नहीं रहे थे। जयपुर में दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ मैच में सौरभ को ऊपर लाया गया। दक्षिण अफ़्रीका ने 249 का लक्ष्य दिया था। इन दोनों ने 126 रन की सलामी साझेदारी कर दी। भारत यह मैच हार गया, लेकिन जोड़ी चल पड़ी। इन्होंने कुल इक्कीस शतकीय साझेदारी की और लगभग पचास के औसत से 6609 रन बनाये। केन्या के ख़िलाफ़ 258 की साझेदारी तो उस वक़्त रिकॉर्ड थी। इन दोनों के नाम आज तक सबसे अधिक 136 पारियाँ खेलने का रिकॉर्ड है। सौ से अधिक पारी खेलने वालों में इनसे बेहतर औसत मात्र ग्रीनिज-डेसमंड हेंस का है।

एक ICC ट्वीट में सचिन ने सौरभ से पूछा, “आज की तरह रिंग से बाहर चार फ़ील्डर, और दो नयी गेंदों के साथ हम कितने रन और बनाते, सौरभ?”

सौरभ ने जवाब दिया, “कम से कम 4000 रन अधिक तो बना ही लेते! मुझे तो पहले ओवर में ही कवर ड्राइव सीमा-रेखा पार करती दिख रही है

दायें-बायें का कॉम्बिनेशन कई टीमों ने अपनाये, लेकिन इनमें एक ग़ज़ब का पूरक सन्तुलन था। गेंदबाज़ आख़िर कितनी लाइन बदले? द्रविड़ ने गांगुली को ‘ऑफ़ साइड का भगवान’ कहा था, और तेन्दुलकर तो पूरे मैदान के ही भगवान थे। ये पन्द्रह ओवर ख़त्म होने के बाद भी तकनीक बदलकर, स्ट्राइक बदलकर जमे रहते। एक और बात जो मुझे लगती कि उनमेंजो अच्छा खेल रहा होता, उसको वह स्ट्राइक देते रहते। यह बड़ा निर्मोही सन्तुलन था। कोई फ़ॉर्म में नहीं चल रहा, तो उसे स्ट्राइक कम दिया लेकिन रखा साथ ज़रूर।

ठिगने सचिन, लम्बे सौरभ। शान्त-चित्त सचिन, उबलते सौरभ। गेंद की लाइन में सीमा-रेखा पहुँचाते सचिन, आगे बढ़कर गगनचुंबी शॉट लगाते सौरभ। सुलझे सचिन, उलझे सौरभ। इन दोनों में कोई समानता नहीं थी, और यही इनकी ताक़त थी।

मैच-फ़िक्सिंग प्रकरण के बाद कप्तान सौरभ ने 2000 में ICC नॉक-आउट में भारत को फ़ाइनल तक पहुँचाया। सेमीफ़ाइनल और फ़ाइनल, दोनों में उन्होंने शतक लगाये जिसमें दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ 141 रन की पारी यादगार है। अब सौरभ की टीम का सामना ऑस्ट्रेलिया से होने वाला था। वानखेड़े (मुम्बई) में हुए पहले मैच में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को दस विकेट से हराकर अपनी सोलहवीं लगातार जीत दर्ज की। अनिल कुम्बले और श्रीनाथ जैसे मुख्य गेंदबाज़ चोट की वजह से बाहर थे, और राहुल द्रविड़ के बुरे फ़ॉर्म की चर्चा अख़बारों में थी। हरभजन सिंह 1997 से ही टीम में अपनी जगह बना नहीं पा रहे थे, और उनके गेंदबाज़ी पर ‘चक’ करने के आक्षेप लगे थे। एक समय उन्होंने सब छोड़कर विदेश में ट्रक चलाने का निर्णय ले लिया था। सौरभ ने चयनकर्ताओं से लड़कर उन्हें इस शृंखला में जगह दिलवायी। अगला मैच सौरभ के अपने शहर कलकत्ता के ईडन गार्डंन में था।

स्टीव वॉ ने टॉस जीता और मैथ्यू हेडन, स्लेटर, लैंगर ने चाय तक ही लगभग दो सौ रन बना लिये। चार विकेट गिरने के बाद जो हुआ, वह इस इतिहास की पहली कड़ी थी। गांगुली की अनुशंसा पर आये हरभजन सिंह ने रिकी पोंटिंग और एडम गिलक्रिस्ट को लगातार दो गेंदों में पगबाधा आउट (lbw) कर दिया। अब हैट्रिक की सम्भावना थी तो सभी खिलाड़ियों ने शेन वार्न को घेर लिया और रमेश ने उछलकर कैच पकड़ लिया। यह भारतीय टेस्ट इतिहास की पहली हैट्रिक थी!

स्टीव वॉ ने बागडोर थामे रखी और अगले दिन भारत में अपना पहला, और जीवन का पच्चीसवाँ शतक बनाकर ही दम लिया। मैकग्राथ और गिलेस्पी जैसे निचले क्रम के खिलाड़ियों के साथ शतक बनाना विपक्षी टीम की छाती पर मूँग दलने जैसा है। इतना ही नहीं, 445 कास्कोर खड़ा कर भारत के मात्र 128 रन पर आठ विकेट उसी दिन गिरा भी दिये। खेल के तीसरे दिन भारत फ़ॉलो-ऑन खेल रहा था। गांगुली के अपने शहर में यह खेल एक शर्मनाक हार की ओर बढ़ रहा था। स्टीव वॉ के शब्दों में वह ‘आख़िरक़िला’ ध्वस्त करने आये थे।

पहली पारी में लक्ष्मण छठे स्थान पर उतरे थे और अर्धशतक बनाया था। गांगुली ने फ़ॉलो-ऑन से पहले लक्ष्मण से पूछा, “ओपनिंग करोगे?”

लक्ष्मण ने कहा, “नहीं। पर नं. 3 पर उतर सकता हूँ।”

तीसरे दिन भी शुरुआत ख़ास नहीं रही। लगभग सौ रन पर तीन विकेट गिर चुके थे, जिसमें एक तेन्दुलकर का विकेट था। लक्ष्मण और गांगुली ने दो सौ का आँकड़ा पार कराया, फिर गांगुली भी साथ छोड़ गये। चौथे दिन द्रविड़ और लक्ष्मण के साथ ईडेन गार्डंन में पार्टी शुरू हुई। ये दोनों खेलते गये। लक्ष्मण ने दोहरा शतक पूरा किया। द्रविड़ ने भी शतक पूरा किया, और अपनी पहचान के विपरीत आक्रामक रूप से पत्रकारों की तरफ़ अपना बल्ला दिखाया। इशारा यह था कि मेरे बुरे फ़ॉर्म पर लिखना बन्द करो! ऑस्ट्रेलिया के पास इन दोनों का कोई जवाब नहीं था। ये दोनों पूरे दिन सुबह से शाम तक खेलते रह गये!