उदय प्रकाश की उपन्यास पीली छतरी वाली लड़की का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

बीसवीं सदी के अन्त और इक्कीसवीं सदी की दहलीज़ की ये वे तारीखें थीं जब प्रेमचन्द, टॉल्सटॉय, गाँधी या टैगोर का नाम तक लोग भूलने लगे थे। किताबों की दुकानों में सबसे ज़्यादा बिक रही थी बिल गेट्स की किताब दि रोड अहेड

वह तुंदियल अमीर खाऊ आदमी, ग़रीब तीसरी दुनिया की नंगी विश्व सुन्दरियों के साथ एक आइसलैंड के किसी महँगे रिसॉर्ट में लेटा हुआ मसाज करा रहा था । अचानक उसे कुछ याद आया और उसने सेल फोन उठाकर एक नम्बर मिलाया।

विश्व सुन्दरी ने उसे वियाग्रा की गोली दी, जिसे निगलकर उसने उसके स्तन दबाये। “हेलो ! आयम निखलाणी, स्पीकिंग ऑन बिहाफ ऑफ द आई.एम.एफ. गेट मी टु दि प्राइम मिनिस्टर!”

“येस...येस! निखलाणी जी! कहिये, कैसे हैं? मैं प्रधानमन्त्री बोल रहा हूँ।”

“ठीक से सहलाओ ! पकड़कर ! ओ.के.!” उस आदमी ने मिस वर्ल्ड को प्यार से डाँटा, फिर सेल फोन पर कहा, “इत्ती देर क्यों कर दी...साईं ! जल्दी करो! पॉवर, आई.टी., फूड, हेल्थ, एजुकेशन ... सब ! सबको प्रायवेटाइज करो साईं !... ज़रा क्विक ! और पब्लिक सेक्टर का शेयर बेचो... डिसएन्वेस्ट करो...! हमको सब ख़रीदना है साईं ...!”

“बस-बस! ज़रा-सा सब्र करें भाई... बन्दा लगा है ड्यूटी पर । मेरा प्रोब्लम तो आपको पता है । खिचड़ी सरकार है । सारी दालें एक साथ नहीं गलतीं निखलाणीजी।”

“मुँह में ले लो। लोल...माई लोलिट् ।” रिच एंड फेमस तुंदियल ने विश्व सुन्दरी के सिर को सहलाया फिर “पुच्च..पुच्च” की आवाज़ निकाली। “आयम, डिसअपायंटेड पण्डिज्जी! पार्टी फंड में कितना पंप किया था मैंने । हवाला भी, डायरेक्ट भी... केंचुए की तरह चलते हो तुम लोग । इकॉनॅमी कैसे सुधरेगी? अभी तक सब्सिडी भी खत्म नहीं की!”

“हो जायेगी... निखलाणीजी! वो ऑयल इंपोर्ट करने वाला काम पहले कर दिया था, इसलिए सोयाबीन, सूरजमुखी और तिलहन की खेती करने वाले किसान पहले ही र्बाबाद थे। उसके फौरन बाद सब्सिडी भी हटा देते तो बवाल हो जाता... आपके हुकुम पर अमल हो रहा है भाई... सोच-समझकर क़दम उठा रहे हैं।”

“जल्दी करो पण्डित! मेरे को बी.पी. है। ज़्यादा एंक्ज़ायटी मेरे हेल्थ के लिए ठीक नहीं। मरने दो साले किसानों बैंचो…को…ओ. के…”

उस आदमी ने सेल्युलर ऑफ़ किया, एक लम्बी घूँट स्कॉच की भरी और बेचैन होकर बोला, “वो वेनेजुएला वाली रनर अप कहाँ है । उसे बुलाओ।”

किन्नू दा ने राहुल से कहा, “आदिवासियों की सबसे बडी विशेषता यह है कि उनकी ज़रूरतें सबसे कम हैं । वे प्रकृति और पर्यावरण का कम-से-कम नुकसान करते हैं सिंहभूमि, झारखण्ड, मयूरभंज, बस्तर और उत्तर-पूर्व में ऐसे आदिवासी समुदाय हैं जो अभी तक छिटवा या झूम खेती करते हैं और सिर्फ कच्ची, भुनी या उबली चीज़ें खाते हैं। तेल में फ्राई करना तक वे पसन्द नहीं करते। वे प्राकृतिक मनुष्य हैं। अपनी स्वायत्तता गैर सम्प्रभुता के लिए उन्होंने भी ब्रिटिश उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ महान् संघर्ष किया था। लेकिन इतिहासकारों ने उस हिस्से को भारतीय इतिहास में शामिल नहीं किया । इतिहास असल में सत्ता क एक राजनीतिक दस्तावेज़ होता है... जो वर्ग, जाति या नस्ल सत्ता में होती है, वह अपने हितों के अनुरूप इतिहास को निर्मित करती है । इस देश और समाज का इतिहास अभी लिखा जाना बाकी है।”

राहुल डर गया। उसने कुछ दिन पहले ही “स्टिगमाटा” नाम की फ़िल्म देखी थी। “दि मेसेंजर विल बी सायलेंस्ड”। ईश्वर के दूत को ख़ामोश कर दिया जायेगा । सच कोई सूचना नहीं है । सूचना उद्योग के लिए सच एक डायनामाइट है। इसलिए सच को कुचल दिया जायेगा । द ट्रुथ हैज़ टु बी डिफ्यूज़्ड ।

टप्। एक पत्ता और गिरेगा।

टप्। एक पवित्र फल असमय अपने अमृत के साथ चुपचाप किसी निर्जन में टपक जायेगा ।

टप्। एक हत्या या आत्महत्या और होगी, जो अगले दिन किसी अख़बार के तीसरे पृष्ठ पर एक-डेढ़ इंच की ख़बर बनेगी ।

टप्! टप्! टप्! समय बीत रहा है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूम रही है।

किन्नू दा को बार-बार आदिवासी इलाके में ट्रांसफर कर दिया जाता। वे सनकी हैं, पगलैट हैं- नौकरशाही में यह चर्चा आम थी। इतने साल आई.ए.एस. अधिकारी रहने के बाद भी उनके पास अपने पी.एफ. के अलावा कोई पैसा नहीं । वे दिल्ली में एक फ्लैट ख़रीदने के लिए परेशान हैं।

राहुल को ऑर्गेनिक केमिस्ट्री से अरुचि हो गयी । उस विषय में उसे विनेगर की, फर्मेंटेशन की, तेज़ गन्ध आती । मोटे भोगी आदमी की डकार और अपान वायु से भरे हुए चेम्बर का नाम है ऑर्गेनिक केमिस्ट्री |

मैं एंथ्रोपोलॉजी में एम.ए. करूँगा, फिर पीएच.डी. और इस मानव समस्या के उत्स तक पहुँचने की कोशिश करूँगा । इतिहास को शैतान ने किस तरह अपने हित में सबोटाज़ किया है, इसके उद्गम तक पहुँचने की मुझमें शक्ति और निष्ठा दे, हे परमपिता!

लेकिन माधुरी दीक्षित ?

और उसकी पीठ ?

और उसकी चौंकी हुई हिरणी जैसी आँखें ?

राहुल ने गुलेल में काग़ज़ की एक गोली बनाकर रबर कान तक खींची और सटाक ! कागज़ की गोली माधुरी दीक्षित की पीठ पर जाकर लगी ।

“उई...” एक मीठी-सी, संगीत में डूबी, उत्तेजक पीड़ा भरी आवाज़ पैदा हुई और गर्दन मोड़कर उस हिरणी ने अपने शिकारी को प्यार से देखा ।

“थैंक यू राहुल! फॉर द इंजरी! आई लव यू।”