मनोज भक्त के उपन्यास शालडुंगरी का घायल सपना का एक अंश, राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।


प्रतिभा को दबाया नहीं जा सकता है!’—पार्टी में यह मुहावरा चारों ओर चल रहा था। बैठकों में, कार्यकर्ताओं-नेताओं की आपसी बातचीत में और मंत्रियों-विधायकों-सांसदों के सम्मान-समारोहों में लोग इस बात को क़ुबूल कर रहे थे कि प्रतिभा को छुपाया नहीं जा सकता है। बबन दुबे इसका उदाहरण था। बबन दुबे नये कार्यकर्ताओं के लिए उम्मीद का प्रतीक था। भागवत राय के समर्थकों का साफ़ कहना था कि मुख्यमंत्री जी को सक्षम टीम चाहिए। गंगा बाबू से अब चलनेवाला नहीं है। अकेले मुख्यमंत्री गाड़ी को कहाँ तक खींचेंगे? गंगा बाबू की जगह नये अध्यक्ष का मनोनयन करना चाहिए और इसके लिए बबन दुबे से ज़्यादा योग्य और प्रतिभाशाली राज्य में दूसरा कौन है?

विद्या अपहरण-कांड और लेवाडीह मॉब लिंचिंग, ये दोनों ही मामले कोर्ट में टिक नहीं पाए। गवाह ही नहीं रहे। स्टील प्लांट से लेकर लेवाडीह तक जितने भी मामले बबन दुबे पर दर्ज हुए, सब-के-सब ख़ारिज हुए। स्टील प्लांट में पार्टी का बोलबाला बबन दुबे की कर्मठता की वजह से है। अध्यक्ष जी की कोई भूमिका हो तो बताइए! बिलकुल सही बात है।

मॉब लिंचिंग में राज्य का नाम बबन दुबे ने रौशन किया था। लेवाडीह साम्प्रदायिक तनाव का लाभ पार्टी को पूरे राज्य में मिला है। बबन दुबे पर एक के बाद दूसरा मुक़दमा हुआ। बबन भैया ही थे कि केस ख़ारिज होते चले गए। किसी में गवाह पलट गया, किसी में हा‌िज़र नहीं हुआ, किसी में आत्महत्या हो गई और किसी में गवाह का एक्सीडेंट हो गया। यह कोई हँसी-खेल नहीं है। कलेजा चाहिए। सौ बात की एक बात यह है कि भागवत राय के बाद यदि कोई है तो बबन दुबे है।

बबन दुबे के बरी होने के दिन ही गुल्लू तिवारी ने भागवत राय को फ़ोन पर सलाह दी थी कि इस अवसर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यह एक बढ़िया सुझाव था। पार्टी के असन्तुष्टों को जवाब देने का यह अच्छा मौक़ा साबित होगा।

विधानसभा सत्र नज़दीक आते-आते चीज़ें स्पष्ट होने लगीं। विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव की घोषणा कर चुका था। विपक्ष की गोलबन्दी भी मज़बूत थी। विपक्ष के कुछ विधायक जिनके साथ भागवत राय की अच्छी पटती थी, उन लोगों ने भी हाथ जोड़कर कह दिया था—अपना घर पहले सँभालिए, सीएम साहब। मुंडा को किसी ने बहका दिया है। करमा भगत, अध्यक्ष जी, प्रद्युम्न सिंह, ख़ुद विधानसभा अध्यक्ष भागवत राय के ख़िलाफ़ गोलबन्दी में लगे हुए थे। ऐसे समय में भितरघातियों को कड़ा सन्देश देने की ज़रूरत है। इसके लिए बबन दुबे की रिहाई के अवसर का इस्तेमाल करना चाहिए। इस सलाह में दम था।

गुल्लू तिवारी के नये प्लांट में भागवत राय पहली बार आए थे। यह टाटा और स्टील सिटी के ठीक बीचोबीच था। यहाँ निर्माण कार्य के लिए हर तरह का माल उपलब्ध था। अर्था के लिए ऐसे कई प्लांट चल रहे थे। जीएनटी प्लांट एक तरफ़ सोसोपिड़ि-दारुहातु रोड होते हुए राजाधानी से जुड़ रहा था और दूसरी तरफ़ टाटा तक सरपट सड़क थी। प्लांट से सटा हुआ जीएनटी सत्कार के नाम से एक बड़ा गेस्टहाउस था। प्लांट और गेस्ट हाउस, दोनों की ज़मीन पर विवाद था। सोसोपिड़ि के आदिवासियों का कहना था कि यह खूँटकट्टी ज़मीन है और गुल्लू तिवारी ने इस पर अवैध क़ब्ज़ा कर लिया है। गुल्लू तिवारी का पक्ष है कि उसने सरकार से लीज पर लिया है।

वैसे, यह नितान्त निजी यात्रा थी। लेकिन मुख्यमंत्री के लिए सुरक्षा का ख़ास इन्तज़ाम करना ही पड़ता है। एक समय यह इलाक़ा भी उग्रवाद प्रभावित था। अर्था गोदाम कर्मियों और अभियंताओं के अपहरण के बाद यहाँ के चप्पे-चप्पे को कॉम्बिंग ऑपरेशन से छान लिया गया था। जिन पर ज़रा भी सन्देह था, उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था या वे मुठभेड़ में मार दिये गए थे। सुरक्षा के लिए स्थानीय पुलिस की दो टुकड़ियाँ बाहर थीं और अन्दर सुरक्षा कमांडो थे।

पहले ही कह दिया गया था कि कोई ताम-झाम नहीं करना है। भागवत राय वहाँ केवल बबन दुबे और गुल्लू तिवारी से कुछ बातचीत करेंगे। वे रातभर रुकेंगे। कोई पत्रकार नहीं, कोई राजनीतिक मुलाक़ात नहीं। गुल्लू तिवारी कहाँ मानने वाला था!

गेस्टहाउस में मंगल-प्रवेश की पूजा तो हो गई थी, अर्था के अधिकारियों का आना-जाना भी शुरू हो गया था, लेकिन विधिवत उद्घाटन अभी भी नहीं हुआ था। स्टे-ऑर्डर के पहले मुख्यमंत्री जी का आगमन सही नहीं होता, इससे ग़लत राजनीतिक सन्देश जाता। अब यह ठीक है। गुल्लू की ज़िद के आगे भागवत राय को झुकना पड़ा।

“जो भी उन पर आरोप हैं, वे न्यायालय में उसका सामना करने के लिए तैयार हैं। विरोधियों के पास अब मुद्दा नहीं बचा है। वे विपक्ष को जनता के कठघरे में खड़ा करेंगे।” उन्होंने एक पत्रकार के सवाल का उत्तर दिया और आगे बोलने से मना कर दिया। उन्होंने हाथ जोड़ लिये, “गोलोकनाथ उनके प्रिय मित्र हैं। उनके गेस्ट-हाउस का उद्घाटन है। इस ख़ुशी में वे शरीक होने आए हैं। वे आज राजनीतिक विषय पर कुछ नहीं बोलेंगे। जिस महिला के इंटरव्यू का आप ज़िक्र कर रहे हैं, वह अभी तक कहाँ थी? मुझे इससे ज़्यादा कुछ नहीं कहना है। आप मिठाई ग्रहण करें!”

“सर के समय सभी चीज़ें ठीक से चल रही हैं। स्टील सिटी की सड़कें थोड़ी ख़राब हैं, आप केवल एक नज़र उस तरफ़ फेर दीजिए और कुछ नहीं कहना है। सर, व्यवसायी आपके साथ हैं। लोग हल्ला करते हैं कि इस बार सरकार गिर जाएगी। हम लोगों ने साफ़ कह दिया कि अभी सर के सामने खड़ा होने वाला कोई दावेदार पैदा नहीं हुआ है।”

भागवत राय ने ठहाका लगाया। हाथ जोड़ लिये, “आप लोगों का आशीर्वाद चाहिए। स्टील सिटी की सड़कों की मरम्मत का एस्ट‌िमेट बन गया है। इस महीने ही टेंडर हो जाएगा।”

भागवत राय उद्घाटन समारोह से जल्द ही निकल गए और सोने की कोशिश करने लगे। उन्हें नींद की ज़रूरत थी। उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को कह दिया था कि पाँच बजे तक मैं सोऊँगा। गुल्लू तिवारी ने भोजन के लिए आग्रह नहीं किया। वह बबन दुबे के साथ बैठकर ज़मीन की क़ीमत पर बात करने लगा। स्क्रेप के धन्धे का पेच समझाने लगा और दाँत में फँसे मटन के रेशों को तिनके से खोदने लगा।

“मैंने अपनी ज़िन्दगी में आज तक नहीं देखा है कि ज़मीन पर ख़र्च कर कोई घाटे में रहा है। ये जो अर्था का प्रोजेक्ट है, अभी देखना, महीनों में ज़मीन की क़ीमत आसमान छूने लगेगी।” गुल्लू तिवारी ने ज़ोर देकर कहा, “ज़मीन लेने में अभी तुम जो ख़र्च कर रहे हो, वह समझो, मिट्टी के बराबर भी नहीं है। समय आने पर यह ज़मीन सोने से ज़्यादा क़ीमत तुम्हें देगी।”

“ज़मीन है कहाँ गुल्लू भैया? सड़क के किनारे पूरी ज़मीन या तो सरकारी है या आदिवासियों की।”

“उनकी तभी तक है जब तक यह तुम्हारे क़ब्ज़े में नहीं है।”

“कहाँ भैया, क़ब्ज़ा आसान नहीं है। मैं ख़ुद कई जगह जाकर देख रहा हूँ।”

“ज़मीन का खेल अकेले सँभालना मुश्किल है। नेटवर्क में आओ। पैसा लगाओ, प्रॉ‌िफ़ट तुम्हारे पॉकिट में। तुम्हें कुछ नहीं करना होगा। न कोर्ट का चक्कर, न क़ब्ज़ा के लिए मशक्कत और न ही बाबुओं के दफ़्तरों का चक्कर। आज जो राजधानी है, इस तरह के नेटवर्क का ही एक करतब है।” गुल्लू तिवारी बबन को बेबाक तरीक़े से समझा रहा था, “पूरा खतियान ही बदल दिया गया। करते रहो, बत्तीस-बत्तीस!”