रीतू गर्ग गुप्ता की किताब मेरे हिस्से की स्याही का एक अंश, बिगफुट पब्लिकेशन्स द्वारा प्रकाशित।


मात्रा बदली, मैं से माँ हो गई

एक नहीं सी ज़िंदगी उस माँ की जाँ हो गई


औरत

होती हैं
इमारत
ज़मीन में गहरी जुड़ी हुई
आँधी तूफ़ान में भी खड़ी हुई
नीव
ईंट और लोहा
पर अटारी
सजी हुई बहुत उमदा
जैसे चमक रहा हो
आग में तपता हुआ लोहा
और बाहर की दीवारें काँच
सी चमकती
जैसे हाथ लगाया
और टूटी
पर ये ही तो है उसकी माया
और जादूगरी
हाथ लगाओ तो हो जाए मैली
पर अंदर से पत्थर की शैली
दिल कमरों की तरह
बँटा है अनेक हिस्सों में
कुछ राज ऐसे जैसे क़िस्सों में
कहीं बना है कोपभवन
और कहीं खिले हैं ख़ुशी के उपवन
कहीं श्रिंगार रस का वास
और कहीं एक बैठक सा माहौल
जैसे किसी के आने की आस
कहीं तिजोरी
कहीं शिवाला
कहीं अंधेरा
कहीं उजाला
अनेकों अलमारियाँ
और उनके भीतर लदी वायदों की बहियाँ
अनेकों परतें
अनेकों मंज़िलें
अनेको कहानियाँ
अनेकों सिलसिले
कहीं मरम्मत
कहीं नवीकरण
लेन-देन के जटिल समीकरण
ऊम्र जब बढ़ती है
तो ऐतिहासिक सा हो जाता है जीवन
नहीं पा सकोगे इसका पार
हाँ पा सकते हो इसका आदर प्यार
अगर अपनी सीमा रखोगे बरकरार
औरत
होती है इमारत
कभी न ललकारना इसकी गैरत –


ये चौबारे

और दीवारें
तेरा घर हैं
तेरा घेरा नहीं
ये दहलीज़
और दरवाज़ा
तेरा दर है
दायरा नहीं
ये तेरे सुकून के लिए काफ़ी हैं
जुनून के लिए नहीं

मज़दूर हूँ

चाहे आज बहुत मजबूर हूँ
पर में इंसान भरपूर हूँ
अपनों से दूर हूँ
आज एक बात कहता हुज़ूर हूँ
तुम अपने इमारतों में बंद
लाक्डाउन से पाबंद
ज़ूम में
रूम मेंमेरे बारे में कहानियाँ पढ़ रहे हो
मेरे लिए एक दूसरे से लड़ रहे हो
क्या मै सिर्फ़ जीत या हार हूँ
महज़ एक विषय एक विचार हूँ
“वी हेव फ़ेल्ड देम”
बहुत अछे लगता है न आप को यह कहना
इसे ही आप लिप सर्विस कहते हैं ना
शायद मै आप के लिए सिर्फ़ एक मुद्दा हूँ
या फिर सिर्फ़ एक अफ़ोरडेबल गुर्दा हूँ
क्या फ़र्क़ है कि ज़िंदा हूँ या मुर्दा हूँ
पर
मेरा भी एक नाम है
एक गाँव है
एक परिवार है
मुझ से भी किसी को अंनकंडिशनल प्यार है
मेरा भी आप जैसा एक संसार है
जहां मै बेरोज़गार हो कर भी बेकार नहीं
जहाँ मै उतना छोटा नहीं जितनी छोटी मेरी पगार है
वहाँ मेरा होना बेशुमार हैं
ना कि एक समाचार हैं
ना कि राजनीति में काम आने वाली तलवार हैं
किसी की उमीद हूँ
माँ बाप की रात की नींद हूँ
जहां मेरे पाँव के छालों को देखकर
कैमरा नहीं
मरहम निकाली जाती है
जहाँ मेरे पाँव के छालों को देख कर
कैमरा नहीं
मरहम निकाली जाती हैं
जहाँ मेरे लिए बचा- कुचा नहीं
मेरी इछा पूछी जाती है
जहाँ मेरे अपने पसीने
गीले करते हैं अपनो के सीने
जहाँ लोग मुझे मेरे काम से नहीं
मेरे रिश्ते से ज्जानते है
जहाँ लोग मुझे अपने जैसा नहीं
बस अपना मानते हैं
अपना मानते है
मैं पेशे से मज़दूर हूँ
पर इंसान की भाषा में फ़िट भरपूर हूँ
माँ तुम्हारी बेटी भी एक माँ है
ऊमर उसकी जवानी और बुढ़ापे के दरमियान है
सब की नज़रों में वह एक समझदार महिला है
पर तेरे लिए वह अभी भी तेरी गुड़िया है
उस दिन जब मेरे सफ़ेद बालों को देखा
तूने नहीं किया उन्हें अनदेखा
बोली मेरी बच्ची अब थोड़ी बेपरवाह हो गयी
यह न कह सकी कि वह भी जवान नहीं रही
मानती ही नहीं की उसकी बेटी बड़ी हो गयी
बस एक कटोरी तेल लाने खड़ी हो गयी
मुझ से बिना पूछे ढेर सारा तेल लगा दिया
फिर वह उल्कझ सुलझा जूड़ा बना दिया
बुढ़ापे में मेरे बचपन को मिला दिया
22 साल के बच्चे की माँ को बच्ची बना दिया
जब भी तुझ से मिलने आती हूँ
मेरी पसंद की खिचड़ी तैयार रखती है
तेरे आगे मेरी डाइट नहीं चलती है
कितने प्यार से मेरी रोटी पर घी मलती है
तेरे आगे मेरी हर गलती चलती है
तेरे आँचम में हर बला टलती है
ही कभी तो तुझे अपने बहुत ही पास पाती हूँ
जब तेरी पहनी साड़ी कर तुझ से से लिपट जाती हूँ
इतनी बार dryclean के बाद भी
तेरी ख़ुशबू से यह रहती है लदी
और अगर लगा लेती हूँ बिंदी
तो आइने में तुझे ही पा लेती हूँ
जैसे जैसे उम्र बढ़ रही
तुझ जैसे लगती हूँ और भी
कहते हैं यह आजकल मुझसे सभी
अब हम हैं एक दूसरे की परछाइयाँ
क्योंकि माँ तेरी बेटी भी अब माँ है
ऊमर उसकी जवानी और बुढ़ापे के दरमियान है


देखो मै एक नन्हा सा दिया हूँ

हमेशा सूरज से तुलना में जिया हूँ
कम ही पड़ता हूँ
तुम कहते हो सूरज को दिया क्या दिखाना ?
पर ज़रा मुझे बताओ आपकी अंधेरी शाम को रोशन करने कौन आता आता है –
प्रेमी और प्रेमिका को कौन मिलाता है
और कौन है जो आपके आदेश पर रोशन हो जाता है
आपके राज कौन छुपाता है
कौन मौसम का नही
आपके इशारे पर नाचता है
किसका दुनिया से नही
सिर्फ़ आप से नाता है
और ये भी सच है कि –
ये तो दिन है जिसे अपने अस्तित्व के लिए सूरज चाहिए
मासूम साँझतोएकछोटेसेदिएसेहीजगमगाजातीहै


The poet is a member of Poets of Mumbai, a chapter of the Poets of community by Ravi Vishwakarma and Ripal Dixit, has been nurturing poets, authors, and literature lovers across India for over seven years. This non-monetary collective thrives on a shared love for words, dedicated to supporting and celebrating Indian literature.